कैसा है यमराज का यमलोक
गरूड़ पुराण में यमलोक के इस रास्ते में वैतरणी नदी का उल्लेख मिलता है। वैतरणी नदी विष्ठा और रक्त से भरी हुई है। जिसने गाय को दान किया है वह इस वैतरणी नदी को आसानी से पार कर यमलोक पहुंच जाता है अन्यथा इस नदी में वे डूबते रहते हैं और यमदूत उन्हें निकालकर धक्का देते रहते हैं।
यमपुरी पहुंचने के बाद आत्मा 'पुष्पोदका' नामक एक और नदी के पास पहुंच जाती है जिसका जल स्वच्छ होता है और जिसमें कमल के फूल खिले रहते हैं। इसी नदी के किनारे छायादार बड़ का एक वृक्ष है, जहां आत्मा थोड़ी देर विश्राम करती है। यहीं पर उसे उसके पुत्रों या परिजनों द्वारा किए गए पिंडदान और तर्पण का भोजन मिलता है जिससे उसमें पुन: शक्ति का संचार हो जाता है।
पुराणों के अनुसार यमलोक एक लाख योजन क्षेत्र में फैला और इसके चार मुख्य द्वार हैं। इसमें से दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। यह घोर अंधकार और भयानक सांप और सिंह से घिरा रहता है। पश्चिम का द्वार रत्नों से जड़ित है। इस द्वार से ऐसे जीवों का प्रवेश होता है जिन्होंने तीर्थों में प्राण त्यागे हो।
उत्तर का द्वार भिन्न-भिन्न स्वर्ण जड़ित रत्नों से सजा होता है, जहां से वही आत्मा प्रवेश करती है जिसने जीवन में माता-पिता की खूब सेवा की हो और जो हमेशा सत्य बोलता रहा हो। पूर्व का द्वार हीरे, मोती, नीलम और पुखराज जैसे रत्नों से सजा होता है। इस द्वार से उस आत्मा का प्रवेश होता है, जो योगी, ऋषि, सिद्ध या संबुद्ध है।