ईश्वर एक या अनेक
ईश्वर एक या अनेक : वेद एकेश्वरवाद की घोषणा करते हैं, इसके हजारों उदाहरण हैं लेकिन हिन्दू समाज एक ईश्वर की प्रार्थना को छोड़कर तरह-तरह के देवी-देवताओं की पूजा करता है, क्यों यह उचित है? यह एक बहस का विषय है।
वैदिक काल में लोग ब्रह्म (ईश्वर) की प्रार्थना करते थे। फिर लोग पंच तत्वों की प्रार्थना करने लगे। फिर इनकी पूजा का प्रचलन शुरू हुआ, फिर इंद्र, वरुण, आदित्य, अश्विन कुमार आदि वैदिक देवताओं को छोड़कर लोग ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पूजा करने लगे।
फिर लोगों ने राम और कृष्ण के मंदिर बनाए तो विष्णु और ब्रह्मा की पूजा-प्रार्थना कम होने लगी। कई लोगों ने चालीसाएं लिखीं और धर्म में एक नए प्रचलन की शुरुआत की। लेकिन क्या वेद में लिखा है कि राम को पूजो, कृष्ण को ईश्वर मानो?
अब आज के युग में लोग इतने भयभीत रहने लगे हैं कि हनुमान और शनि भगवान के मंदिरों की संख्या बढ़ गई है। किसी भी देवी-देवता और गुरु की पूजा करने का यहां विरोध नहीं, लेकिन सिर्फ एक सवाल है कि क्या सैकड़ों देवताओं की पूजा करना या करवाना वेदसम्मत है?